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रावण : आर्यवत का शत्रु 

रावण : आर्यवत का शत्रु 

लेखक_ अमीश त्रिपाठी

अनुवादक _ सुचिता मित्तल 

प्रारूप_किंडल 

#story  

यह रामचंद्र श्रृंखला की तीसरी किताब है। कैसे एक ऋषि का लड़का लंका नरेश बनता है। यह कहानी है रावण की महत्वाकांक्षा की उसके प्रतिभा और उसके एक तरफा प्यार की।

#insight

बहुत सारे डार्क दृश्य है समीची छोटी बच्ची है उसके पिता ने उसे वेश्यालय में बीच दिया है। समीची रावण से मदद मांगती है। कुंभकरण के कहने पर रावण समीची के पिता को पेड़ के साथ बांध देता। रावण समीची को अपना चाकू देता है और समीची को 3 विकल्प देता हैं ।१) गर्दन पर मारोगी तो मृत्यु तुरंत होगी है,२) छाती पर मारोगे तो शायद उसे लगे या फिर शायद चाकू उसके पसलियों से टकराकर मुड़ जाएगा,३) या फिर तुम उसके पेट में चाकू मार सकते हो परंतु इसमें उसके मरने में समय बहुत जाएगा। समीची उसके पिता के पेट में चाकू डालते हुए उसकी आतीओ‌ को चीर देती है। पेट से निकलते खून के गरम फव्वारे में समीची नहा लेती है। ‌उसके पिता के लिए लंबी दर्द भरी मौत चुनते हुए।

➡️‌ टोडी गांव वाले उससे नहीं बचा पाए जो रावण को सबसे ज्यादा प्रिय थे। रावण सदमे में है और बहुत गुस्से में। रावण ने आदेश दिया' सभी को मार डालो बुड्ढे ,बच्चे ,औरतें सभी को।' रावण के सैनिकों ने सभी गांव वालों को मार दिया जंगली जानवर और बाज पक्षी उनकी मास को खा रहे हैं ।परंतु रक्त पिपासा और बर्बरता ही रावण का परिचय नहीं है वह प्रतिभावान है  वह कविता लिखता है,रावण हत्था बजाता है संगीत बजाता है, चित्रकारी करता है, किताबें पढ़ता है और अपने छोटे भाई कुंभकरण से बेहद प्यार करता है। उसके अनुयायी उसे 'अराइवा' कहते हैं जिसका मतलब है 'असली स्वामी'।

➡️ सबरीमाला मंदिरकी भी ‌चर्चा कुंभकरण और रावण करते हैं 

 #strength 

हम रावण और उसके उद्देश्य को बहुत अच्छी तरह से जानने लगते हैं ।एक दृश्य है जहां कुंभकरण और रावण आर्यवत पर बहुत सालों बाद आते हैं। कुंभकरण अपनी मातृभूमि की मिट्टी को उठाकर अपने मस्तक पर लगाता है। रावण भी मिट्टी को उठाता है लेकिन हमें पता है कि वह क्या करने वाला है और वह वैसा ही करता है वह मिट्टी पर थूक देता है और अपने पैरों तले कुचल देता है। रावण नफरत करता है आर्यवत की भूमि को।‌ अमीश साहब की किताब है लिखावट और कहानी निसंदेह अच्छी होनी ही थी।

#weakness 

किताब में सिर्फ रावण और कुंभकरण की ही बातें है। मंदोदरी और इंद्रजीत का सिर्फ एक दो बार ही जिक्र हुआ है । सीता में जो भव्य वर्णन किया गया है इस पुस्तक में वह कम है। 


कुल मिला कर बहुत अच्छी किताब है मौका मिले तो एक बार जरूर पढ़े 

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